पूर्वांचल के कद्दावर नेता और तमकुहीराज में एक बड़े समूह का नेतृत्व करने वाले पण्डित नन्दकिशोर मिश्र तमकुहीराज से सपा के टिकट के प्रमुख दावेदार माने जा रहे थे। सपा प्रमुख उन्हें विजय रथ यात्रा के दौरान टिकट देने का आश्वासन दे रखे थे, लेकिन एन वक्त पर उन्हें टिकट नहीं दिया।
उधर, भाजपा को चुनाव जीतने के लिए नन्दकिशोर मिश्र की आवश्यकता महसूस होने लगी। फिर भाजपा आलाकमान ने उनसे संपर्क करना शुरू किया। और वे चुनाव मतदान से 11 दिन पूर्व भाजपा का दामन थाम लिया। भाजपा में उनके शामिल होने पर हजारों कार्यकर्ताओं ने सैकड़ो गाड़ियों के काफिले के साथ उनका स्वागत किया। फिर वे लगातार कार्यकर्ताओं का बैठक कर पार्टी के प्रत्याशी को जिताने का मंत्र देते रहे।
पार्टी ने नन्दकिशोर मिश्र को तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र के अलावे कसया, फाजिलनगर, पडरौना विधानसभा में भी उपयोग किया। तमकुहीराज से भाजपा के जीत होने पर पार्टी के प्रत्याशी, कार्यकर्ता और पार्टी के वरिष्ठ नेता भी नन्दकिशोर मिश्र के पार्टी में आने और उनके चुनावी मंत्र को अहम मान रहे हैं। तमकुहीराज से भाजपा के विधायक डॉ. असीम कुमार के बनने के बाद नन्दकिशोर मिश्र का पार्टी में कद बढ़ गया है।
पार्टी ने नन्दकिशोर मिश्र को तमकुहीराज विधानसभा क्षेत्र के अलावे कसया, फाजिलनगर, पडरौना विधानसभा में भी उपयोग किया। तमकुहीराज से भाजपा के जीत होने पर पार्टी के प्रत्याशी, कार्यकर्ता और पार्टी के वरिष्ठ नेता भी नन्दकिशोर मिश्र के पार्टी में आने और उनके चुनावी मंत्र को अहम मान रहे हैं। तमकुहीराज से भाजपा के विधायक डॉ. असीम कुमार के बनने के बाद नन्दकिशोर मिश्र का पार्टी में कद बढ़ गया है।
बता दें कि नन्दकिशोर मिश्र 1980 से लगातार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते आ रहे थे। वर्ष 1991 व 1993 में भाजपा से यहां विधायक भी रहे। लेकिन वर्ष 2017 में पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था। तब वे विद्रोह कर निर्दल चुनाव लड़ गये थे। उस समय मोदी की लहर चरम पर थी। फिर भी भाजपा उनके विद्रोह के कारण हार गयी थी और वे सीमित प्रचार के बाद भी 24 हजार वोट पाये थे। दो वर्ष पूर्व उन्हें टिकट देने का आश्वासन देकर सपा ने अपने पार्टी में बुलाया था, लेकिन इन वक्त पर टिकट नहीं दिया।